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सूर्यवंशी राजाओं में चौहान जाति के खडगल सेन राजा सेन राजा खण्डेला नगर में राज्य करते थे। वह बडे़ दयालु आर न्याय प्रिय थे। उनके राज्य में प्रजा बड़े सुख से रहती थी। मृग और मृगराज एक घाट पानी पीते थे। राजा को हमेशा एक यही चिन्ता रहती थी कि उनके एक भी पुत्र नीं था। एक समय राजा ने बड़े आदर भाव से जगत् गुरू ब्राह्मणों को अपने यहाँ बुलाकर उनका बड़ा सत्कार किया। राजा की सेवा भक्ति से ब्राह्मण लोग बड़े संतुष्ट हुए। ब्राह्मणों ने राजा को वर माँगने को कहा। तब राजा ने कहा कि मेरे पुत्र नहीं है, कृपा करके मेरी इच्छा पूरी करायें। तब ब्राह्मणों ने राजा से कहा कि यदि आप शिव की उपासना करोगे तो आपको एक होनहार, पराक्रमी और चक्रवर्ती पुत्र प्राप्त होगा परन्तु उसे सोहल वर्ष तक उत्तर दिशा में मत जाने देना और जो उत्तर दिशा में सूर्य कुण्उ है, उसमें स्नान मत करने देना। यदि वह ब्राह्मणों से द्वेष नहीं करेगा तो चक्रवर्ती राज करेगा, अन्यथा इसी देह से पुर्नजन्म लेगा। इस प्रकार ब्राह्मणों का आशीर्वाद प्राप्त कर राजा बड़ा प्रसन्न हुआ। राजा ने उनको वस्त्र आभूषण, गाय आदि देकर प्रसन्नचित्त विदा किया। राजा के चौबीस रानियाँ थी। कुछ समय बाद उनमें से एक रानी चम्पावती के पुत्र जन्म हुआ। राजा ने बड़ा आन्नद मनाया और नवजात शिशु का नाम सुजान कुँवर रखा। सात वर्ष का होते ही राजकुमार घोडे़ पर चढ़ना, शस्त्र चलाना सीख गया। जब वह बारह वर्ष का हुआ तो शत्रु लोग इससे डरने लगे। वह चौदह विद्या पढ़कर होशियार हो गया। राजा उसके काम को देखकर संतुष्ट हुए।
राजा ने इस बात का ध्यान रखा कि सुजान कुँवर उत्तर दिशा में न जाने पाये। इसी समय में एक बौद्ध (जैन) साधु ने आकर राजपुत्र को जैन धर्म का उपदेश देकर शिवमत के विरूद्ध कर दिया। ब्राह्मणों ने नाना प्रकार के दोष वर्णन किये और 14 वर्ष की उम्र में राजकुमार शिवमत के विरूद्ध होगर जैन धर्म मानने लगा। वह देव पूजा नहीं होने देता था। उसने तीनों दिशाओं पूर्व, पश्चिम, दक्षिण में धूम कर जैन मत का प्रचार किया ब्राह्मणों को बड़ा दुःख दिया, उनके यज्ञोपवीत तोड़े गये। यज्ञ करना बंद हो गया। राजा के भय से राजकुमार उत्तर दिशा में नहीं जाता था। परन्तु प्रारब्ध रेखा कौन मिटावें। राजकुमार अपने 72 उमरावों को साथ लेकर उत्तर दिखा में सूर्य कुण्ड पर चला ही गया जहाँ पर छः रिषेश्वर, परासुर गौतम आदि को यज्ञ करता देख बड़ा क्रोधित हुआ। राजकुमार की आज्ञा से उमरावों ने इन ब्राह्मणों का बड़ा कष्ट दिया। यज्ञ की सब सामग्री नष्ट कर दी। इन कुकृत्यों पर ब्राह्मणों ने शाप दिया कि तुम सब इसी समय जड़ बुद्धि पाषाणवत् हो जाओ। तब 72 उमराव और राजकुमार घोड़ों सहित जड़ बुद्धि पाषाणवत् हो गये। राजकुमार के शाप ग्रसित होने की खबर चारों तरफ फैल गई। राजा और नगर निवासी यह समाचार सुनकर बड़े दुःखी हुए। महाराज खडगल सेन ने इसी दुःख में प्राण तक त्याग दिये। इनके साथ इनकी सोलह रानियाँ सती हो गई। शेष आठ रानियाँ रावले में रहीं। अब राज्य की रक्षा करने वाला कोई नहीं रहा तो आस-पास के राजाओं ने हमले करके राज्य को छिन्न-भिन्न कर दिया और अपना जीता हुआ भाग अपने-अपने राज्य में सम्मिलित कर लिया। इधर राजकुमार की रानी बहत्तर उमरावों की पत्नियों सहित रूदन करती हुई उन्हीं ब्राह्मणों की शरण में गई जिन्होंने इनके पतियों को शाप दिया था। ये उन ब्राह्मणों के चरणों में गिर पड़ीं, रोई और नम्रता से प्रार्थना करने लगी। यह हल देखकर ब्राह्मणों को उन पर दया आई। उन्होंने धर्म उपदेश दिया और कहा कि हम शाप दे सकते हैं लेकिन शाप-मुक्त करना हमारा काम नहीं है। ब्राह्मणों ने उनको सलाह दी कि पास ही गुफा में जाकर शिव की आराधना करो। तुम्हारी आराधना से प्रसन्न होकर शंकर और पार्वती ही इन लोगों को शाप से छुटकारा करा सकेंगे। सब स्त्रियाँ गुफा में गई और वहीं भक्तिपूर्वक शिवजी की साधना करने लगी। कुछ समय बाद भगवान शिव और पार्वती घूमते-घूमते उधर ही आ निकले जहाँ राजकुमार अपने बहत्तर उमरावों और घोड़े सहित पत्थर के होकर पड़े थे। भगवान शिवजी से पार्वती जी ने इन पत्थर की मूत्तियों के होने के बारे में पूछा। तब शिवजी ने इन मूत्तर््ियों का पूर्ण इतिहास पार्वतीजी को समझाया। इसी समय राजकुमार की रानी व बहत्तर उमरावों की स्त्रियाँ आकर पार्वती जी के चरणों में गिर पड़ीं और अपनी व्यथा प्रकरट करने लगी। पार्वतीजी ने उनके कष्ट से व्यथित होकर शिवजी से इनको शाप मुक्त करने की प्रार्थना की।
इस पर महादेव जी ने उनकी मोह निद्रा छुड़ा कर उनको चेतन किया। सब चेतन हो भगवान शिवजी को प्रणाम करने लगे। राजकुमार जैसे ही अपने होश में आया श्री पार्वतीजी के स्वरूप से लुभायमान हो गया। यह देख कर पार्वतीजी ने उसे शाप दिया कि हे कुकर्मी तू भीख मांग कर खायेगा और तेरे वंश वाले हमेशा भीख मांगते रहेंगे। वे ही आगे चलकर ‘जागा’ के नाम से विदित हुए। बहत्तर उमारा बोले-हे भगवान! अब हमारे घर बार तो नहीं रहे, हम क्या करें। तब शिवजी ने कहा ‘तुमने पूर्वकाल में क्षत्रिय होकर स्वधर्म त्याग दिया, पर इसी कारण तुम क्षत्रिय नह होगर अब वैश्य पद के अधिकारी होंगे। जाकर सूर्यकुण्ड में स्नान करो।’ सूर्य कुण्ड में स्नान करते ही तलवार से लेखनी, भालों की डांडी और ढ़ालों से तराजू बन गई और वे वैश्य बन गये। भगवान महेश के द्वारा प्रतिबोध देने के कारण ये बहत्तर उमराव ‘माहेश्वरी वैश्य’ कहलाये। जब यह खबर ब्राह्मणों को मिली कि महादेव जी ने बहत्तर उमरावों को शाप मुक्त किया है तो उन्होंने आकर शिवजी से प्रार्थना की कि हे भगवान आपने इनकों शाप मुक्त तो कर दिया लेकिन हमारा यज्ञ कैसे पूरा होगा? तब शंकर ने उन उमरावों को उपदेश दिया कि आज से ये ऋषि तुम्हारे गुरू हुए। इन्हें तुम अपना गुरू माना करना। शिवजी ने ब्राह्मणों से कहा कि इनके पास देने को इस समय कुछ नहीं है परन्तु इनके घर में मंगल उत्सव होगा तब यथाशिक्ति द्रव्य दिये जायेंगे, तुम इनको स्वधर्म में चलने की शिक्षा दो। ऐस वर देकर शंकर पार्वती सहित वहाँ से अन्तर्धान हो गये। ब्राह्मणों ने इनको वैश्य धर्म धारण कराया। तब बहत्तर उमाराव इन छः रिषेश्वरों के चरणों में गिर पड़े। बहत्तर उमरावों में से एक-एक ऋषि के बारह-बारह शिष्य हुए। वही अब यजमान कहे जाते हैं। कुछ काल के पीछे खण्डेला छोड़कर यह सब डीडवाना आ बसे। वे बहत्तर उमराव खांप के डीड माहेश्वरी कहलाये। यही दिन जेठ सुदी नवमी का दिन था, जब माहेश्वरी वैश्य कुल की उत्पत्ति हुई। दिन-प्रतिदिन यह वंश बढ़ने लगा। -- Regards, Shri Maheshwari Samaj Jaipur

Kedar Mal Bhala
(President)
आदरणीय वरिष्ठजनों व साथियों,
जैसा कि आप सभी जानते हैं कि वर्तमान युग सूचना का युग है। आज सूचनाओं का आदान प्रदान बड़ी तेजी से होता है। इस डिजिटल युग में यह जरूरी भी है। इसी को ध्यान में रखते हुए श्री माहेश्वरी समाज की वेबसाइट लांच की जा रही है, जिसमें समाज से सम्बंधित सभी सूचनाओं का समावेश होंगा। माहेश्वरी समाज के कार्यों का इतना विस्तार हो गया है कि यह वेबसाइट जरुरी हो गई है। इसका उद्देश्य यह है कि समाज के लोग तो इसका लाभ उठाए ही, अन्य लोग भी लाभ उठाएं।
माहेश्वरी समाज की इस वेबसाइट में समाज की उत्पत्ति का इतिहास और विधान की विस्तृत जानकारी तो होगी ही। साथ ही मैरिज ब्यूरों, रोजगार ब्यूरो, समाज की मासिक पत्रिका, डायग्नोस्टिक सेन्टर की जानकारी, ECMS द्रारा क्रय की जाने वाली वस्तुए/सामग्री के टैण्डर भी उपलब्ध रहेगे । समारोहा के लिए जनोपयोगी ‘उत्सव’ व ‘अभिनन्दन’ सामुदायिक भवनों की जानकारी भी वेबसाइट पर मौजूद रहेगी।
इसके अलावा अखिल भारतीय माहेश्वरी महासभा की जानकारी देश भर में विभिन्न ट्रस्टों द्वारा बनवाई गई धर्मशालाओं की जानकारी भी वेबसाइट पर उपलब्ध रहेगी। समाज के संरक्षक व पूर्व अध्यक्षों की जानकारी भी इसमें डाली गई है। समाज के प्रमुख ईवेंट के साथ-साथ डे-बाई-डे के कार्यक्रमों की सूचना भी अपडेट होती रहेगी। इन सूचनाओं के जरिए आशा की जाती है कि इससे लोगों में और सक्रियता बढे़गी।
Maha Mantri
Shri Gopal Lal Malpani
साथियों जय महेश!
आज के डिजिटल युग मे जब युवाओं से लेकर वरिष्ठजन सोशियल मिडिया के द्वारा ही अपने आप को देश एवं दुनिया से सम्पर्क कर रहे हैं अतः हमारी भी एक स्वतन्त्र वैब साइट हो ऐसी आवश्यकता प्रतिपादित समझी गई ताकि माहेश्वरी बन्धुओं को वैब साइट के माध्यम से समाज की दिन प्रतिदिन की गतिविधियों की जानकारी उपलब्ध करवाई जा सके l इसी को दृष्टिगत रखते हुए समाज बन्धुओं के लिए यह वेब साईट समर्पित है। मुझे आशा है कि इस वेब साईट के माध्यम से आप समाज की गतिविधियों से अवगत हो सकेंगे l
आज के डिजिटल युग मे जब युवाओं से लेकर वरिष्ठजन सोशियल मिडिया के द्वारा ही अपने आप को देश एवं दुनिया से सम्पर्क कर रहे हैं अतः हमारी भी एक स्वतन्त्र वैब साइट हो ऐसी आवश्यकता प्रतिपादित समझी गई ताकि माहेश्वरी बन्धुओं को वैब साइट के माध्यम से समाज की दिन प्रतिदिन की गतिविधियों की जानकारी उपलब्ध करवाई जा सके l इसी को दृष्टिगत रखते हुए समाज बन्धुओं के लिए यह वेब साईट समर्पित है। मुझे आशा है कि इस वेब साईट के माध्यम से आप समाज की गतिविधियों से अवगत हो सकेंगे l
श्री माहेश्वरी समाज, जयपुर
Photo | Name |
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स्व. हरिनारायण जी तोषनीवाल |
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स्व. सेठ श्री बिशन लाल कचोलिया |
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स्व. श्री गणेश नारायण जी सोमानी |
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स्व. रायबहादुर मुंशी नानगराम जी झंवर |
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स्व. डाॅ. ज्वाला प्रसाद जी कचोलिया |
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स्व. श्री गणेश नारायण जी अजमेरा |
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स्व. श्री प्रभूदयाल जी लोईवाल |
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स्व. श्री मोहन लाल जी लढ्ढ़ा |
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स्व. श्री चांदबिहारी लाल जी साबू |
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स्व. श्री कन्हैयालाल जी सारड़ा |
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स्व. श्री कन्हैयालाल जी घाटीवाला |
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स्व. श्री बंशीधर जी नोवाल |
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स्व. श्री भंवरलाल जी फोफलिया |
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स्व. श्री लक्ष्मीनिवास जी मूंदडा |
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श्री रमेश चन्द्र जी मनिहार |
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स्व. श्री आर.एस. जी परवाल (हांगकांग प्रवासी) |
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स्व. श्री बाबूलाल जी कोठ्यारी |
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स्व. श्री बाबूलाल जी कोठ्यारी |
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स्व. श्री रामदास जी राठी |
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स्व. श्री सतीश चन्द्र जी लोईवाल |
Photo | Name |
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स्व. सेठ श्री गोविन्द नारायण उर्फ बब्बू जी सोमानी |
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स्व. श्री उत्तम चन्द नांगलिया |
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स्व. श्री रामगोपाल काबरा |
Photo | Name | Year | Mobile |
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स्व. श्री श्यामलाल जी काबरा | 1925-1928 / 1930-1935 | |
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स्व. श्री गणेश नारायण जी सोमानी | 1929-1930 | |
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स्व. डाॅ. ज्वाला प्रसाद जी कचोलिया | 1936-1948 / 1950-1959 | |
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स्व. श्री प्रभूदयाल जी लोईवाल | 1948-1950 / 1960-1966 |